Saturday, 25 June 2016

समर्थ रामदास स्वामी कृत मनाचे श्लोक १४१-१५० हिंदी अनुवाद सहित

म्हणे दास सायास त्याचे करावे |
जनीं जाणता पाय त्याचे धरावे ||
गुरू अंजनेवीण ते आकळेना |
जुने ठेवणे मीपणे आकळेना ||१४१||
जिन्हे स्वरूपबोध हुआ हैं उनकी सेवा करे
जिन्होंने जान लिया उनकी चरणसेवा करे 
गुरु की कृपा से ही स्वरूपबोध होगा 
अहंकारवश स्वरुप समझ न पाओगे

कळेना कळेना कळेना ढळेना |
ढळे नाढळे संशयोही ढळेना ||
गळेना गळेना अहंता गळेना |
बळे आकळेना मिळेना मिळेना ||१४२||
समझता नहीं हैं उलझन बरक़रार हैं 
संशय तो हटते हट नहीं रहा 
अहंकार के गलने की कोई सम्भावना नहीं 
हमारी मर्जी से समझेगा नहीं मिलेगा नहीं

अविद्यागुणे मानवा ऊमजेना |
भ्रमे चूकले हीत ते आकळेना ||
परीक्षेविणे बांधले दृढ नाणे |
परी सत्य मिथ्या असे कोण जाणे ||१४३||
अविद्या के कारण समझ में नहीं आता हैं
भ्रमवश हित समझ में नहीं आ रहा हैं 
बिना जांच के सिक्के को खरा मान लिया
किसे पता सिक्का खरा हैं या खोटा

जगी पाहता साच ते काय आहे |
अती आदरे सत्य शोधून पाहे ||
पुढे पाहता पाहता देव जोडे |
भ्रम भ्रांति अज्ञान हे सर्व मोडे ||१४४||
दुनिया में सत्य का पता करे 
सादर सत्य का अन्वेषण करे 
आगे धीरे धीरे परमात्मा से जुड़ जाओगे
भ्रम भ्रान्ति अज्ञान सब छूट जायेंगे

सदा वीषयो चिंतिता जीव जाला |
अहंभाव अज्ञान जन्मास आला ||
विवेके सदा स्वस्वरूपी भरावे |
जिवा ऊगमी जन्म नाही स्वभावे ||१४५||
जीव को तो विषयों का चिंतन लगा रहता हैं 
इसीसे अहंकार और अज्ञान उदित होता हैं 
हमेशा विवेकसे अपने मूल स्वरुप में रहे 
देहासक्ति हमारा स्वभाव नहीं हैं

दिसे लोचनी ते नसे कल्पकोडी |
अकस्मात आकारले काळ मोडी ||
पुढे सर्व जाईल काही न राहे |
मना संत आनंत शोधूनि पाहे ||१४६||
जो प्रतीत हो रहा हैं वो टिकेगा नहीं 
जो कुछ भी हैं उसे अकस्मात् काल भंग करेगा 
आगे कुछ टिकने वाला नहीं 
हे मन अनन्तस्वरूप संतों की खोज कर

फुटेना तुटेना चळेना ढळेना |
सदा संचले मीपणे ते कळेना ||
तया एकरूपासि दूजे न साहे |
मना संत आनंत शोधूनि पाहे ||१४७||
टूट फुट चलना ढलना कुछ नहीं 
अचल हैं लेकिन अहंकारवश न समझेगा 
वो जो एक हैं वहां कोई दूसरा नहीं हैं 
हे मन अनन्तस्वरूप संतों की खोज कर

निराकार आधार ब्रह्मादिकांचा |
जया सांगता शीणली वेदवाचा ||
विवेके तदाकार होऊनि राहे |
मना संत आनंत शोधूनि पाहे ||१४८||
जो निराकार ब्र्ह्मादिकों का आधार हैं
जिसका वर्णन करते हुए वेद मौन हो जातें हैं 
विवेकसे उससे तदाकार हो जा 
हे मन अनन्तस्वरूप संतों की खोज कर

जगी पाहता चर्मचक्षी न लक्षे |
जगी पाहता ज्ञानचक्षी निरक्षे ||
जनीं पाहता पाहणे जात आहे |
मना संत आनंत शोधूनि पाहे ||१४९||
देह की आँखों से वह तत्व ना दिखेगा 
उसे तो सीधा अनुभव करना होगा 
इधर उधर ढूंढने से समय जाया होगा 
हे मन संतों की करुणा से उस अनन्त को खोज

नसे पीत ना श्वेत ना श्याम काही |
नसे व्यक्त अव्यक्त ना नीळ नाही ||
म्हणे दास विश्वासता मुक्ति लाहे |
मना संत आनंत शोधूनि पाहे ||१५०||
वह तत्व पीत श्वेत या श्याम नहीं हैं 
वह व्यक्त अव्यक्त या नीला नहीं हैं 
स्वामी रामदास मुक्ति का विश्वास दिलाते हैं 
हे मन संतों की करुणा से उस अनंत को खोज










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