Saturday, 25 June 2016

समर्थ रामदास स्वामी कृत मनाचे श्लोक ७१-८० हिंदी अनुवाद सहित


जयाचेनि नामे महादोष जाती |
जयाचेनि नामे गती पाविजेती ||
जयाचेनि नावे घडे पुण्यठेवा |
प्रभाते मनी राम चिंतीत जावा ||७१||

जिसके नामस्मरण से महादोष नष्ट होते हैं 
जिसके नामस्मरण से सद्गति मिलती हैं 
जिससे आप द्वन्द्वों के ऊपर उठ सकते हैं 
प्रातःकाल उस राम का चिंतन करे

न वेचे कदा ग्रंथिचे अर्थ काही |
मुखे नाम उच्चारिता कष्ट नाही ||
महाघोर संसारशत्रू जिणावा |
प्रभाते मनी राम चिंतीत जावा ||७२||

ग्रंथों का अध्ययन करना मुश्किल हैं 
मुंह से नाम लेना तो आसान हैं 
मनमानी करना माने खुद से शत्रुता करना 
क्यों नहीं प्रातःकाल राम नाम समरण करना

देहेदंडणेचे महादुःख आहे |
महादुःख ते नाम घेता न राहे ||
सदाशीव चिंतीतसे देवदेवा |
प्रभाते मनी राम चिंतीत जावा ||७३||

हठयोग में तो बड़ी पीड़ा होती हैं 
यदि मुहं में नाम हैं तो पीड़ा कैसी 
शिवजी इसी तत्व का चिंतन करते हैं 
प्रातःकाल राम का चिंतन करे

बहुतांपरी संकटे साधनांची |
व्रते दान उद्यापने ती धनाची ||
दिनाचा दयाळू मनी आठवावा |
प्रभाते मनी राम चिंतीत जावा ||७४||

साधनामार्ग में तो बड़ी विपत्तियां आती हैं 
व्रत दान अधिष्ठान में तो बड़ा खर्चा होता हैं
हम तो दीनों में रूचि रखनेवाले राम को स्मरें
प्रातःकाल बस रामही का चिंतन करें

समस्तांमधे सार साचार आहे |
कळेना तरी सर्व शोधून पाहे ||
जिवा संशयो वाउगा तो त्यजावा |
प्रभाते मनी राम चिंतीत जावा ||७५||

सब बातों का सार तो सदाचार हैं 
यदि समझता नहीं तो स्वयं ढूंढे 
कोई भी संदेह मन में बैठ न जाए 
प्रातःकाल श्रीराम का चिंतन करे

नव्हे कर्म ना धर्म ना योग काही |
नव्हे भोग ना त्याग ना सांग पाही ||
म्हणे दास विश्वास नामी धरावा |
प्रभाते मनी राम चिंतीत जावा ||७६||

कर्म धर्म और योग की बात नहीं हैं
भोग त्याग या कोई निर्देश नहीं हैं 
केवल नाम में विश्वास जगाइए 
प्रातःकाल श्रीराम का स्मरण कीजिये

करी काम निष्काम या राघवाचे |
करी रूप स्वरूप सर्वां जिवांचे ||
करी छंद निर्द्वंद्व हे गूण गाता |
हरीकीर्तनी वृत्तिविश्वास होता ||७७||

निष्काम कर्म में ही तो राम हैं 
प्राणिमात्र में परमात्मा देखना ही तो स्वरुप बोध हैं 
राम का गुणगान आपको द्वन्द्वों से ऊपर उठाएगा 
हरी कीर्तन में आपकी सहज प्रवृत्ति हो जाए

अहो ज्या नरा रामविश्वास नाही |
तया पामरा बाधिजे सर्व काही ||
महारज तो स्वामि कैवल्यदाता |
वृथा वाहणे देहसंसारचिंता ||७८||

जिस नर को राम नाम में विश्वास नहीं 
उसे तो हर जगह प्रतिकूलता ही होगी 
राम कैवल्य के दाता हैं 
नश्वर देह में शाश्वत आसक्ति किस काम की

मना पावना भावना राघवाची |
धरी अंतरी सोडि चिंता भवाची ||
भवाची जिवा मानवा भूलि ठेली |
नसे वस्तुची धारणा व्यर्थ गेली ||७९||
वह भावना पावन हैं जिसमे राम हैं 
उसी भावना में रहे दूसरी चिंता न करे 
माया का भूलभुलैया हैं 
जो नहीं हैं सो नहीं हैं

धरा श्रीवरा त्या हरा अंतराते |
तरा दुस्तरा त्या परा सागराते ||
सरा वीसरा त्या भरा दुर्भराते |
करा नीकरा त्या खरा मत्सराते ||८०||
शिवजी के ह्रदय में विराजित राम का ध्यान धरे 
इसीसे तो दुस्तर भवसागर पार हो पाओगे 
मन की तृष्णा तो कभी पूरी नहीं होंगी 
जिस मन में मत्सर हैं उसमे राम कैसे होंगे



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