गणाधीश जो ईश सर्वा गुणांचा |
मुळारंभ आरंभ तो निर्गुणाचा ||
नमूं शारदा मूळ चत्वार वाचा |
गमू पंथ आनंत या राघवाचा ||१||
गणेश जो सभी गुणों के अधिपति हैं
जो हमें हमारे मूल से जोड़कर गुणातीत की ओर गति देते हैं
हम माँ शारदा की वंदना करते हैं जो शब्दों के गुह्य प्रकट कराती हैं
अब हम राम को पाने की राह पर चलेंगे जो की अनन्त हैं
मना सज्जना भक्तिपंथेंचि जावें |
तरी श्रीहरी पाविजेतों स्वभावें ||
जनीं निंद्य तें सर्व सोडून द्यावें |
जनीं वंद्य तें सर्व भावें करावें ||२||
भक्ति पंथ पर चलना होगा
यदि राम को सहजता से पाना हैं
वह सब कुछ करे जिससे लोगो का कल्याण हो
वो सब ना करे जिसमे उनकी हानि हो
प्रभाते मनीं राम चिंतीत जावा |
पुढें वैखरी राम आधीं वदावा ||
सदाचार हा थोर सोडूं नये तो |
जनीं तोचि तो मानवी धन्य होतो ||३||
सुबह का प्रारम्भ राम के चिंतन से हो
पहले सत्य का चिंतन हो फिर जुबान पे बात आये
सदाचार से जो कभी डिगे नहीं
उसी का जीना जीना माना जायेगा
मना वासना दुष्ट कामा न ये रे |
मना सर्वथा पापबुद्धी नको रे ||
मना सर्वथा नीति सोडूं नको हो |
मना अंतरीं सार वीचार राहो ||४||
दूसरों के प्रति दुष्टता कोई काम की नहीं
पापों में लिप्त व्यभिचारिणी बुद्धि कोई काम की नहीं
निति का त्याग गलत बात हैं
ह्रदय में सारभूत विचार हम धारण करें
मना पापसंकल्प सोडूनि द्यावा |
मना सत्यसंकल्प जीवीं धरावा ||
मना कल्पना ते नको वीषयांची |
विकारें घडे हो जनीं सर्व ची ची ||५||
पाप का संकल्प छोड़ दे
सत्य के संकल्प पर कायम रहे
हरदम इंद्रिय सुखों की चिंता न करे
मनोविकार से कोई सम्मान नहीं मिलेगा
नको रे मना क्रोध हा खेदकारी |
नको रे मना काम नाना विकारी ||
नको रे मना सर्वदा अंगिकारू |
नको रे मना मत्सरू दंभ भारू ||६||
जिससे खेद हो ऐसा क्रोध न करे
जिससे विकार उत्पन्न हो ऐसी वासना न करे
ऐसी कोई बात न करे
जिससे मन में दम्भ और मत्सर जागे
मना श्रेष्ठ धारिष्ट जीवी धरावे |
मना बोलणे नीच सोशीत जावे ||
स्वये सर्वदा नम्र वाचे वदावे |
मना सर्व लोकांसि रे नीववावे ||७||
श्रेष्ठ धैर्य को मन में धारण करे
लोगों के कटुवचन सहन करे
सदा सर्वदा नम्रता धारण करे
दूसरों के अंतःकरण को शीतल करे
देहे त्यागिता कीर्ति मागे उरावी |
मना सज्जना हेचि क्रीया धरावी ||
मना चंदनाचे परी त्वां झिजावे |
परी अंतरी सज्जना नीववावे ||८||
दुनिया से जाए पर सुनहरी यादें छोड़ जाए
हमेशा लोगों के लिए सुनहरे पलों का निर्माण करे
उसी प्रकार जैसे चन्दन घिस जाने के बाद
हवा में अपनी सुगंध बिखेरता हैं
नको रे मना द्रव्य ते पूढिलांचे |
अति स्वार्थबुद्धी न रे पाप सांचे ||
घडे भोगणे पाप ते कर्म खोटे |
न होता मनासारिखे दुःख मोठे ||९||
दूसरों के संपत्ति की कामना ना करे
खुद को केंद्र में रखोगे तो पापाचार ही होगा
पाप का भुगतान करना ही पड़ेगा यदि किया हैं
ख्वाबों के शीश महल टूटेंगे तो कांच चुभेंगे
सदा सर्वदा प्रीति रामीं धरावी |
दुखाची स्वयें सांडि जीवीं करावी ||
देहेदुःख तें सूख मानीत जावें |
विवेकें सदा स्वस्वरूपीं भरावें ||१०||
राम ही में हमारी प्रीती रहे
आकर्षण का केंद्र गलत होने से दुःख होता हैं
तकलीफ देनेवाले सात्विक कर्म ही सुख निर्माण करेंगे
विवेक जागृत हैं तो अस्तित्व का केंद्र समझ में आएगा
मुळारंभ आरंभ तो निर्गुणाचा ||
नमूं शारदा मूळ चत्वार वाचा |
गमू पंथ आनंत या राघवाचा ||१||
गणेश जो सभी गुणों के अधिपति हैं
जो हमें हमारे मूल से जोड़कर गुणातीत की ओर गति देते हैं
हम माँ शारदा की वंदना करते हैं जो शब्दों के गुह्य प्रकट कराती हैं
अब हम राम को पाने की राह पर चलेंगे जो की अनन्त हैं
मना सज्जना भक्तिपंथेंचि जावें |
तरी श्रीहरी पाविजेतों स्वभावें ||
जनीं निंद्य तें सर्व सोडून द्यावें |
जनीं वंद्य तें सर्व भावें करावें ||२||
भक्ति पंथ पर चलना होगा
यदि राम को सहजता से पाना हैं
वह सब कुछ करे जिससे लोगो का कल्याण हो
वो सब ना करे जिसमे उनकी हानि हो
प्रभाते मनीं राम चिंतीत जावा |
पुढें वैखरी राम आधीं वदावा ||
सदाचार हा थोर सोडूं नये तो |
जनीं तोचि तो मानवी धन्य होतो ||३||
सुबह का प्रारम्भ राम के चिंतन से हो
पहले सत्य का चिंतन हो फिर जुबान पे बात आये
सदाचार से जो कभी डिगे नहीं
उसी का जीना जीना माना जायेगा
मना वासना दुष्ट कामा न ये रे |
मना सर्वथा पापबुद्धी नको रे ||
मना सर्वथा नीति सोडूं नको हो |
मना अंतरीं सार वीचार राहो ||४||
दूसरों के प्रति दुष्टता कोई काम की नहीं
पापों में लिप्त व्यभिचारिणी बुद्धि कोई काम की नहीं
निति का त्याग गलत बात हैं
ह्रदय में सारभूत विचार हम धारण करें
मना पापसंकल्प सोडूनि द्यावा |
मना सत्यसंकल्प जीवीं धरावा ||
मना कल्पना ते नको वीषयांची |
विकारें घडे हो जनीं सर्व ची ची ||५||
पाप का संकल्प छोड़ दे
सत्य के संकल्प पर कायम रहे
हरदम इंद्रिय सुखों की चिंता न करे
मनोविकार से कोई सम्मान नहीं मिलेगा
नको रे मना क्रोध हा खेदकारी |
नको रे मना काम नाना विकारी ||
नको रे मना सर्वदा अंगिकारू |
नको रे मना मत्सरू दंभ भारू ||६||
जिससे खेद हो ऐसा क्रोध न करे
जिससे विकार उत्पन्न हो ऐसी वासना न करे
ऐसी कोई बात न करे
जिससे मन में दम्भ और मत्सर जागे
मना श्रेष्ठ धारिष्ट जीवी धरावे |
मना बोलणे नीच सोशीत जावे ||
स्वये सर्वदा नम्र वाचे वदावे |
मना सर्व लोकांसि रे नीववावे ||७||
श्रेष्ठ धैर्य को मन में धारण करे
लोगों के कटुवचन सहन करे
सदा सर्वदा नम्रता धारण करे
दूसरों के अंतःकरण को शीतल करे
देहे त्यागिता कीर्ति मागे उरावी |
मना सज्जना हेचि क्रीया धरावी ||
मना चंदनाचे परी त्वां झिजावे |
परी अंतरी सज्जना नीववावे ||८||
दुनिया से जाए पर सुनहरी यादें छोड़ जाए
हमेशा लोगों के लिए सुनहरे पलों का निर्माण करे
उसी प्रकार जैसे चन्दन घिस जाने के बाद
हवा में अपनी सुगंध बिखेरता हैं
नको रे मना द्रव्य ते पूढिलांचे |
अति स्वार्थबुद्धी न रे पाप सांचे ||
घडे भोगणे पाप ते कर्म खोटे |
न होता मनासारिखे दुःख मोठे ||९||
दूसरों के संपत्ति की कामना ना करे
खुद को केंद्र में रखोगे तो पापाचार ही होगा
पाप का भुगतान करना ही पड़ेगा यदि किया हैं
ख्वाबों के शीश महल टूटेंगे तो कांच चुभेंगे
सदा सर्वदा प्रीति रामीं धरावी |
दुखाची स्वयें सांडि जीवीं करावी ||
देहेदुःख तें सूख मानीत जावें |
विवेकें सदा स्वस्वरूपीं भरावें ||१०||
राम ही में हमारी प्रीती रहे
आकर्षण का केंद्र गलत होने से दुःख होता हैं
तकलीफ देनेवाले सात्विक कर्म ही सुख निर्माण करेंगे
विवेक जागृत हैं तो अस्तित्व का केंद्र समझ में आएगा
Thanks for this. It is an excellent work.
ReplyDeleteSare jivan ki uthal-puthal
ReplyDeleteSe paar pane ka saral upay hai ye shloke
Good job
Deleteहिंदी में अर्थ समझाने के लिए धन्यवाद।
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