Wednesday, 22 June 2016

समर्थ रामदास स्वामी कृत मनाचे श्लोक २१ - ३० हिंदी अनुवाद सहित

मना वासना चूकवी येरझारा |
मना कामना सोडि रे द्रव्यदारा ||
मना यातना थोर हे गर्भवासी |
मना सज्जना भेटवी राघवासी ||२१||

स्थैर्य तो वासना से छूटकर ही आएगा
स्त्री और द्रव्य की कामनाओं से भला क्या होगा
बस घूम घूमकर यही आते जाते रहोगे
सज्जनों का संग ही तो राम से जोड़ेगा

मना सज्जना हीत माझे करावे |
रघूनायका दृढ चित्ती धरावे ||
महाराज तो स्वामि वायुसुताचा |
जना उद्धरी नाथ लोकत्रयाचा ||२२||

मेरा हित तो मेरा मन ही कर सकता हैं
वह राम को नित्यरूप से धारण कर सकता हैं
राम हनुमान के स्वामी हैं
वो तीनों लोको का उद्धार करते हैं

न बोले मना राघवेवीण काही |
मनी वाउगे बोलता सौख्य नाही ||
घडीने घडी काळ आयुष्य नेतो |
देहांती तुला कोण सोडू पहातो ||२३||

मेरे मन तू राम को छोड़ और का चिंतन न कर
उटपटांग बातों से क्या हासिल होगा
पल पल जीवन की घड़ियाँ ख़त्म हो रही हैं
अंत में किसके हाथो बच पाएगा सोच ले

रघूनायकावीण वाया शिणावे |
जनासारिखे व्यर्थ का वोसणावे ||
सदा सर्वदा नाम वाचे वसो दे |
अहंता मनी पापिणी ते नसो दे ||२४||

राम को छोड़कर व्यर्थ श्रम ही होगा
इधर उधर की बातों से क्या मिलेगा
जिव्हा पर राम का नाम रहे
मन में अहंकार का लेश न हो

मना वीट मानू नको बोलण्याचा |
पुढे मागुता राम जोडेल कैचा ||
सुखाची घडी लोटता सूख आहे |
पुढे सर्व जाईल काही न राहे ||२५||

राम का सिमरन तो करना ही होगा
नहीं तो राम से जुड़ कैसे पाएंगे
इस पल में तो गुदगुदी हो रही हैं
अंतिम साँस का भी तो सोचना हैं

देहेरक्षणाकारणे यत्न केला |
परी शेवटी काळ घेऊन गेला |
करी रे मना भक्ति या राघवाची |
पुढे अंतरी सोडि चिंता भवाची ||२६||

हमें शरीर से तो भारी लगाव हैं
लेकिन क्या वह काल का ग्रास नहीं हैं
मेरे मन तेरी भक्ति तो राम में ही हो
यही तुझे सभी जंजालों से सवारेगी

भवाच्या भये काय भीतोस लंडी |
धरी रे मना धीर धाकासि सांडी ||
रघूनायकासारिखा स्वामि शीरी |
नुपेक्षी कदा कोपल्या दंडधारी ||२७||

शरीर की आसक्ति भयभीत कर रही हैं
धीरज रखे और दबाव से ऊपर उठे
राम के समान स्वामी रखवाला हैं
जब यम का प्रकोप होगा राम रक्षा करेंगे

दिनानाथ हा राम कोदंडधारी |
पुढे देखता काळ पोटी थरारी ||
मना वाक्य नेमस्त हे सत्य मानी |
नुपेक्षी कदा राम दासाभिमानी ||२८||

धनुर्धारी राम तो गरीब निवाज हैं
उसके समक्ष तो काल भयभीत होता हैं
इस सारभूत वाक्य को ही सत्य जाने
अपने भक्तों की उपेक्षा राम कभी नहीं करते हैं

पदी राघवाचे सदा ब्रीद गाजे |
बळे भक्तरीपूशिरी कांबि वाजे ||
पुरी वाहिली सर्व जेणें विमानी |
नुपेक्षी कदा राम दासाभिमानी ||२९||

राम चरण का तो यह ब्रीद हैं
रामभक्तों के शत्रु टिक नहीं सकते
राम तो पूरी अयोध्या को वैकुंठ ले गए
अपने भक्तों की उपेक्षा राम कभी नहीं करते हैं

समर्थाचिया सेवका वक्र पाहे |
असा सर्व भूमंडळी कोण आहे ||
जयाची लिला वर्णिती लोक तीन्ही |
नुपेक्षी कदा राम दासाभिमानी ||३०||

रामभक्त को टेढ़ी निगाह से देखे
ऐसा इस दुनिया मैं कौन हैं
तीनो लोक तो रामलीला का ही गान करते हैं
अपने भक्तों की उपेक्षा राम कभी नहीं करते हैं

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