Thursday, 23 June 2016

समर्थ रामदास स्वामी कृत मनाचे श्लोक ५१-६० हिंदी अनुवाद सहित

मदे मत्सरे सांडिली स्वार्थबुद्धी |
प्रपंचीक नाही जयाते उपाधी ||
सदा बोलणे नम्र वाचा सुवाचा |
जगी धन्य तो दास सर्वोत्तमाचा ||५१||

जो मद मत्सर और स्वार्थ से रहित हैं
जो मिथ्या बातों में व्यर्थ उलझता नहीं
जो विनम्रता से अच्छे वचन बोलता हैं
वहीँ तो सर्वोत्तम का दास कहलाता हैं

क्रमी वेळ जो तत्त्वचिंतानुवादे |
न लिंपे कदा दंभ वादे विवादे ||
करी सूखसंवाद जो ऊगमाचा |
जगी धन्य तो दास सर्वोत्तमाचा ||५२||

जो तत्व चिंतन में अपना समय देता हैं
जो दम्भिक वाद विवादों में उलझता नहीं
जो सुखपूर्वक मूल तत्त्व पर संवाद करता हैं
वही तो सच्चा दस हैं सर्वोत्तम का

सदा आर्जवी प्रीय जो सर्व लोकी |
सदा सर्वदा सत्यवादी विवेकी ||
न बोले कदा मिथ्य वाचा त्रिवाचा |
जगी धन्य तो दास सर्वोत्तमाचा ||५३||

लोककल्याण में तत्पर सबका प्रिय
हर वक़्त सत्यवादी और विवेकपूर्ण
जो कभी मिथ्या बातें नहीं करता हैं
वही तो सर्वोत्तम का दास माना जाता हैं

सदा सेवि आरण्य तारुण्यकाळी |
मिळेना कदा कल्पनेचेनि मेळी ||
चळेना मनी निश्चयो दृढ ज्याचा |
जगी धन्य तो दास सर्वोत्तमाचा ||५४||

जो युवावस्था में सुख चैन में लिप्त नहीं होता
बैठे बैठे इधर उधर की कल्पनाओं में नहीं उलझता
जिसका दृढ़ निश्चय कभी डिगता नहीं हैं
वही तो सर्वोत्तम का दास कहलाता हैं

नसे मानसी नष्ट आशा दुराशा |
वसे अंतरी प्रेमपाशा पिपाशा ||
ऋणी देव हा भक्तिभावे जयाचा |
जगी धन्य तो दास सर्वोत्तमाचा ||५५||

जिसके मन में व्यर्थ की आशा दुराशाओं का जंजाल नहीं
जिसके ह्रदय में प्राणिमात्र के प्रति प्रेम और सद्भावना हैं
ईश्वरीय तत्त्व जिसके ऊपर परम संतुष्ट हैं
वही तो सर्वोत्तम का दास कहलाता हैं

दिनाचा दयाळू मनाचा मवाळू |
स्नेहाळू कृपाळू जनीं दासपाळू ||
तया अंतरी क्रोध संताप कैचा |
जगी धन्य तो दास सर्वोत्तमाचा ||५६||

दीनों के प्रति दया और मृदुता जहाँ हैं
दासों से स्नेह और कृपादृष्टि रखता हैं
जिसके भीतर क्रोध का लेश नहीं हैं
वही तो सर्वोत्तम का दास माना जायेगा

जगी होइजे धन्य या रामनामे |
क्रिया भक्ति ऊपासना नित्य नेमें ||
उदासीनता तत्त्वता सार आहे |
सदा सर्वदा मोकळी वृत्ति राहे ||५७||

दुनिया में आकर रामनाम में ही तो रमना हैं
कर्म भक्ति और उपासना में निरंतरता रखनी हैं
द्वन्द्वों से ऊपर उठना ही सब तत्त्वों का सार हैं
हमारा चित्त हरदम सरल रहना चाहिए

नको वासना वीषयी वृत्तिरूपे |
पदार्थी जडे कामना पूर्वपापे ||
सदा राम निष्काम चिंतीत जावा |
मना कल्पनालेश तोहि नसावा ||५८||

वासनाएं हमारे मन में कही प्रवृत्ति न बन जाए
स्थूल विषय यदि हावी हैं तो यह कमजोरी हैं
राम का चिंतन बिना किसी मतलब से करे
मन में किसी कल्पना का लेश भी न हो

मना कल्पना कल्पिता कल्पकोटी |
नव्हे रे नव्हे सर्वथा रामभेटी ||
मनी कामना राम नही जयाला |
अती आदरे प्रीति नाहि तयाला ||५९||

कल्पनाओं के महल खड़े करके
क्या राम से मुलाकात हो जाएगी
अंतर्यामी राम की अनुभूति में ही रस हो
इसी विषय में सब आदर और प्रीती रहे

मना राम कल्पतरू कामधेनू |
निधी सार चिंतामणी काय वानू ||
जयाचेनि योगे घडे सर्व सत्ता |
तया साम्यता कायसी कोण आता ||६०||

राम तो कल्पतरु हैं कामधेनु हैं
चिंतामणि हैं सबसे बड़ा निधि हैं
जो सभी सत्ताओं का केंद्र हैं
उसके समान दूसरा कोई नहीं

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