Thursday, 30 June 2016

समर्थ रामदास स्वामी कृत मनाचे श्लोक १५१-१६० हिंदी अनुवाद सहित

खरे शोधिता शोधिता शोधिताहे |
मना बोधिता बोधिता बोधिताहे ||
परी सर्वही सज्जनाचेनि योगे |
बरा निश्चयो पाविजे सानुरागे ||१५१||
सत्य को खोजे खोजे और खोजे
मन का बोध करे बोध करे बोध करे
सब कुछ सज्जनों के संग से ही सम्भव है
निश्चय और अनुराग हैं तो खोज पूरी होगी

बहूतांपरी कूसरी तत्त्वझाडा |
परी अंतरी पाहिजे तो निवाडा ||
मना सार साचार ते वेगळे रे |
समस्तांमधे एक ते आगळे रे ||१५२||
दूसरों को तो तत्व बोध झाड़ सकते हैं
लेकिन आपके भीतर क्या आपने उसे पाया हैं
सदाचार ही तो सबका विलक्षण सार हैं
सब बातों में जो सबसे ख़ास बात हैं

नव्हे पिंडज्ञाने नव्हे तत्त्वज्ञाने |
समाधान काही नव्हे तानमाने ||
नव्हे योगयागे नव्हे भोगत्यागे |
समाधान ते सज्जनाचेनि योगे ||१५३||
जीवशास्त्र दर्शनशास्त्र से नहीं होगा
संगीत से भी समाधान नहीं होगा
योग से नहीं भोगत्याग से नहीं
समाधान तो सज्जनों के संग से ही मिलेगा

महावाक्य तत्त्वादिके पंचकर्णे |
खुणे पाविजे संतसंगे विवर्णे ||
द्वितीयेसि संकेत जो दाविजेतो |
तया सांडुनी चंद्रमा भाविजेतो ||१५४||
महावाक्य तत्व और शास्त्र
संतों की करुणा से ही समझेंगे
संकेत के साधन अंतिम लक्ष्य नहीं हैं
लेकिन साध्य तक तो साधन ही ले जायेंगे

दिसेना जनीं तेची शोधूनि पाहे |
बरे पाहता गूज तेथेचि आहे ||
करीं घेउं जाता कदा आढळेना |
जनीं सर्व कोंदाटले ते कळेना ||१५५||
जो लोगों में नहीं दिखता हैं उसे खोजे
वही पर तो सब राज छुपे हुए हैं
यदि मलकियत करने जाओगे तो पकड़ न पाओगे
सब जनों में व्याप्त हैं पर समझ के बाहर

म्हणे जाणता तो जनीं मूर्ख पाहे |
अतर्कासि तर्की असा कोण आहे ||
जनीं मीपणे पाहता पाहवेना |
तया लक्षिता वेगळे राहवेना ||१५६||
जो कहता हैं मेरी समझ में आ गया वो बेवकूफ हैं
यहाँ तर्क वितर्क और समझ की बात नहीं हैं
लोगों में अहंकारयुक्त दृष्टी से देखने से न दिखेगा
यदि उसपर ध्यान हैं तो बिलग न रह पाओगे

बहू शास्त्र धुंडाळिता वाड आहे |
जया निश्चयो येक तोही न साहे ||
मती भांडती शास्त्रबोधे विरोधे |
गती खुंटती ज्ञानबोधे प्रबोधे ||१५७||
बहोत शास्त्र ढूंढने से कोई लाभ नहीं
ढूंढते ढूंढते कहीं निश्चय न छूट जाए
शास्त्रों में तो परस्पर विरोधी बाते मिलेगी
इस प्रकार का बोध तो रुकावट पैदा करेगा

श्रुती न्याय मीमांसके तर्कशास्त्रे |
स्मृती वेद वेदांतवाक्ये विचित्रे ||
स्वये शेष मौनावला स्थीर राहे |
मना सर्व जाणीव सांडून पाहे ||१५८||
श्रुति न्यायशास्त्र मीमांसा तर्कशास्त्र
स्मृति वेद वेदांत काफी जटिल हैं
हजार मुखोवाला शेष भी मौन हो जाता हैं
तो आप तो जानकार होने का दावा छोड़ ही दो

जेणे मक्षिका भक्षिली जाणिवेची |
तया भोजनाची रुची प्राप्त कैची ||
अहंभाव ज्या मानसीचा विरेना |
तया ज्ञान हे अन्न पोटी जिरेना ||१५९||
जिसने अहंकार की मक्खी को निगला
उसे भोजन का स्वाद पूछने से क्या लाभ
अहंकार जबतक कायम हैं
जो ज्ञान हासिल किया हैं वो हजम नहीं होगा

नको रे मना वाद हा खेदकारी |
नको रे मना भेद नना विकारी ||
नको रे मना शीकवू पूढिलांसी |
अहंभाव जो राहिला तूजपासी ||१६०||
खेद को उत्पन्न करने वाला वाद किस काम का
वह भेद दृष्टि किस काम की जो अनेक विकार पैदा करती हैं
सामनेवाले को सिखाने से क्या लाभ
जो खुद हमारे पास इतना अहंकार हैं

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