Saturday, 25 June 2016

समर्थ रामदास स्वामी कृत मनाचे श्लोक १११-१२० हिंदी अनुवाद सहित

हिताकारणे बोलणे सत्य आहे |
हिताकारणे सर्व शोधूनि पाहे ||
हिताकारणे बंड पाखांड वारी |
तुटे वाद संवाद तो हीतकारी ||१११||
अपना हित चाहते हो तो सत्य पर कायम रहो 
अपने हित के लिए व्यापक अनुसन्धान करो 
परमात्मा को नकारने से हित नहीं होगा 
वाद का अंत करनेवाला संवाद ही हित करेगा

जनीं सांगता ऐकता जन्म गेला |
परी वादवेवाद तैसाचि ठेला ||
उठे संशयो वाद हा दंभधारी |
तुटे वाद संवाद तो हीतकारी ||११२||
कहते सुनते जिंदगी गुजर गयी 
विवाद तो ज्यों के त्यों बना हुआ हैं 
दम्भ ही संशय उत्पन्न करता हैं 
वाद का अंत करनेवाला संवाद ही हित करेगा

जनीं हीत पंडीत सांडीत गेले |
अहंतागुणे ब्रह्मराक्षस जाले ||
तयाहून व्युत्पन्न तो कोण आहे |
मना सर्व जाणीव सांडूनि राहे ||११३||
विद्वानों को दुनिया का भला नहीं करना हैं 
उनको तो अहंकार बढाकर खुदको भस्म करना हैं 
इन विद्वानों से बड़े विद्वान आपको नहीं मिलेंगे 
प्यारे मन तुझे कर्तुत्व का अभिमान छोड़ना होगा

फुकाचे मुखी बोलता काय वेचे |
दिसंदीस अभ्यंतरी गर्व सांचे ||
क्रियेवीण वाचाळता व्यर्थ आहे |
विचारे तुझा तूचि शोधूनि पाहे ||११४||
अपना काम करते रहो रामनाम लेते रहो 
नहीं तो दिनोदिन अहंकार से फूलते जाओगे 
कुछ करोगे भी या सिर्फ बोलते रहोगे 
खुद ढूंढिए और खुद पाइए

तुटे वाद संवाद तेथे करावा |
विवेके अहंभाव हा पालटावा ||
जनीं बोलण्यासारखे आचरावे |
क्रियापालटे भक्तिपंथेचि जावे ||११५||
ऐसा संवाद करे जिससे वाद समाप्त हो 
विवेकी बने अहंकार छोड़े 
जैसा बोलते हो वैसा करे 
खुद को रूपांतरित करे भक्तिपंथ पर बढे

बहू श्रापिता कष्टला अंबऋषी |
तयाचे स्वये श्रीहरी जन्म सोशी ||
दिला क्षीरसिंधु तया ऊपमानी |
नुपेक्षी कदा देव भक्ताभिमानी ||११६||
अम्ब्रीश को श्रापमुक्त करने के लिए 
श्रीहरि खुद जन्म लेते हैं 
वे उपमन्यु को क्षीरसागर प्रदान करते हैं 
वे अपने भक्तों की कभी उपेक्षा नहीं करते हैं

धुरू लेंकरु बापुडे दैन्यवाणे |
कृपा भाकिता दीधली भेटि जेणे ||
चिरंजीव तारांगणी प्रेमखाणी |
नुपेक्षी कदा देव भक्ताभिमानी ||११७
ध्रुव की अवस्था तो बड़ी ही दीन थी
उसने भगवन की कृपा चाही तो दर्शन दिए 
प्रेम का खजाना पाकर तारामंडल में चिरंजीव हुआ 
जिन भक्तों का ईश्वर को अभिमान हैं उनकी उपेक्षा कैसी

गजेंद्रू महासंकटी वाट पाहे |
तयाकारणे श्रीहरी धावताहे ||
उडी घातली जाहला जीवदानी |
नुपेक्षी कदा देव भक्ताभिमानी ||११८||
गजेंद्र की जान पर संकट आया तो प्रभु को पुकारा 
पुकार सुनकर श्रीहरि तुरंत दौड़ पड़े 
तुरंत छलांग लगाकर जीवनदान दिया 
जिन भक्तों का ईश्वर को अभिमान हैं उनकी उपेक्षा कैसी

अजामेळ पापी तया अंत आला |
कृपाळूपणे तो जनीं मुक्त केला ||
अनाथासि आधार हा चक्रपाणी |
नुपेक्षी कदा देव भक्ताभिमानी ||११९||
अजामिल पापी जब मौत के निकट पहुँचा
कृपा करते हुए उसे मुक्त किया 
अनाथों के आधार तो एक श्रीहरि ही हैं 
जिन भक्तों का ईश्वर को अभिमान हैं उनकी उपेक्षा कैसी

विधीकारणे जाहला मत्स्य वेगी |
धरी कूर्मरूपे धरा पृष्ठभागी ||
जना रक्षणाकारणे नीच योनी |
नुपेक्षी कदा देव भक्ताभिमानी ||१२०||
ब्रह्माजी के कहने से बड़ी शीघता से मत्स्य बने 
कछुआ बनकर धरती को पीठ पर धारण किया 
लोककल्याण के लिए कितनी ही हीन योनियों में जन्मे 
जिन भक्तों का ईश्वर को अभिमान हैं उनकी उपेक्षा कैसी










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