Wednesday, 22 June 2016

समर्थ रामदास स्वामी कृत मनाचे श्लोक ३१-४० हिंदी अनुवाद सहित

महासंकटी सोडिले देव जेणे |
प्रतापे बळे आगळा सर्वगूणे ||
जयाते स्मरे शैलजा शूलपाणी |
नुपेक्षी कदा राम दासाभिमानी ||३१||

संकटकाल में जिसने देवताओं को छुड़ाया
जो प्रतापी बलवान और विशेष सर्वगुण संपन्न हैं
जिसका समरण शंकर पारवती भी करते हैं
अपने भक्तों की उपेक्षा राम कभी नहीं करते हैं

अहल्या शिळा राघवे मुक्त केली |
पदी लागता दिव्य होऊनि गेली ||
जया वर्णिता शीणली वेदवाणी |
नुपेक्षी कदा राम दासाभिमानी ||३२||

पत्थर बनी अहल्या राम ने मुक्त की
चरण स्पर्श हुआ तो वह दिव्य हो गयी
जिसका सही आकलन तो वेद भी न कर पाये
वे राम अपने भक्तों की उपेक्षा नहीं करते

वसे मेरुमांदार हे सृष्टिलीला |
शशी सूर्य तारांगणे मेघमाळा ||
चिरंजीव केले जनीं दास दोन्ही |
नुपेक्षी कदा राम दासाभिमानी ||३३||

मेरु और अन्य सृष्टि को जिसने धारण किया हैं
चन्द्र सूर्य और मेघमाला जिसके आश्रित हैं
जिसने अपने दो दासों को चिरंजीव किया
वे राम अपने भक्तों की उपेक्षा नहीं करते

उपेक्षा कदा रामरूपी असेना |
जिवा मानवा निश्चयो तो वसेना ||
शिरी भार वाहेन बोले पुराणी |
नुपेक्षी कदा राम दासाभिमानी ||३४||

राम की उपेक्षा न करे
यह निश्चय कठिन हैं
पुराण कहते हैं कि राम सब पूरा करेंगे
राम अपने भक्तों की उपेक्षा नहीं करते

असे हो जया अंतरी भाव जैसा |
वसे हो तया अंतरी देव तैसा ||
अनन्यास रक्षीतसे चापपाणी |
नुपेक्षी कदा राम दासाभिमानी ||३५||

जिसके भीतर जैसा भाव होता हैं
उसके पास वैसा ही देव होता हैं
जो अनन्य रूप से शरणागत हैं
उसकी राम उपेक्षा नहीं करते

सदा सर्वदा देव सन्नीध आहे |
कृपाळूपणे अल्प धारिष्ट पाहे ||
सुखानंद आनंद कैवल्यदानी |
नुपेक्षी कदा राम दासाभिमानी ||३६||

राम सदैव आपके निकट हैं
वह कृपावंत थोड़ा धैर्य चाहते हैं
वो सुख आनंद कैवल्य का दान देंगे
अपने दासों की राम उपेक्षा नहीं करते

सदा चक्रवाकासि मार्तंड जैसा |
उडी घालितो संकटी स्वामि तैसा ||
हरीभक्तिचा घाव गाजे निशाणी |
नुपेक्षी कदा राम दासाभिमानी ||३७||

चक्रवाक के लिए जैसा सूर्य
वैसा ही भक्तों के लिए राम
इस बात का डंका तो पुराणों में हैं
अपने दासों की राम उपेक्षा नहीं करते

मना प्रार्थना तूजला एक आहे |
रघूराज थक्कीत होऊनि पाहे ||
अवज्ञा कदा हो यदर्थी न कीजे |
मना सज्जना राघवी वस्ति कीजे ||३८||

हे मन तुझसे एक ही प्रार्थना हैं
रघुनाथ तेरी ओर देख रहे हैं
उनकी अवज्ञा मत कर
सज्जनो के संग राम में रंग जा

जया वर्णिती वेद शास्त्रे पुराणे |
जयाचेनि योगे समाधान बाणे ||
तयालागि हे सर्व चांचल्य दीजे |
मना सज्जना राघवी वस्ति कीजे ||३९||

वेद शास्त्र और पुराण जिसका बखान करते हैं
जिससे आपको समाधान मिल सकता हैं
अपने मन की चंचलता उसे दे दे
सज्जनो के संग राम में रंग जाइये

मना पाविजे सर्वही सूख जेथे |
अती आदरे ठेविजे लक्ष तेथे ||
विवेके कुडी कल्पना पालटीजे |
मना सज्जना राघवी वस्ति कीजे ||४०||

जो आपको सब सुख प्रदान कर सकता हैं
उसकी ओर बड़े आदर से अपना ध्यान लगाए
विवेक द्वारा व्यर्थ कल्पनाओं को बदले
सज्जनो के संग राम में रंग जाये

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