Thursday, 30 June 2016

समर्थ रामदास स्वामी कृत मनाचे श्लोक १७१-१८० हिंदी अनुवाद सहित

असे सार साचार ते चोरलेसे |
इही लोचनी पाहता दृश्य भासे ||
निराभास निर्गूण ते आकळेना |
अहंतागुणे कल्पिताही कळेना ||१७१||
सब बातों का सार जो सदाचार हैं वो दूर हो गया
मूलतत्व तो सामान्य दृष्टि से नहीं दिखेगा
जो निर्गुण निराभास हैं उसका आकलन कैसे होगा
अहंकार युक्त चित्त की कल्पनाओं में वो आने वाला नहीं

स्फुरे वीषयी कल्पना ते अविद्या |
स्फुरे ब्रह्म रे जाण माया सुविद्या ||
मुळी कल्पना दो रुपे तेचि जाली |
विवेके तरी स्वस्वरूपी मिळली ||१७२||
अविद्या विषयों में आसक्ति बढ़ाएगी
सुविद्या ब्रह्म की ओर गति करेगी
कल्पना से द्वैत बना रहेगा
विवेकसे ही स्वरुप में स्थित हो सकोगे

स्वरूपी उदेला अहंकार राहो |
तेणे सर्व आच्छादिले व्योम पाहो ||
दिशा पाहता ते निशा वाढताहे |
विवेके विचारे विवंचूनि पाहे ||१७३||
यदि अहंकार छोड़ दोंगे तो स्वरुप को जानोगे
हर तरफ तो वही तत्व है
अहंकार कुछ देखने नहीं देता
विवेक और विचार से ढूँढना होगा

जया चक्षुने लक्षिता लक्षवेना |
भवा भक्षिता रक्षिता रक्षवेना ||
क्षयातीत तो अक्षयी मोक्ष देतो |
दयादक्ष तो साक्षिने पक्ष घेतो ||१७४||
चर्म चक्षु जिसे देख नहीं सकते
माया के शिकंजे से आप बच नहीं सकते
आप अक्षय मुक्ति का पद पा सकते हैं
परमात्मा साक्षीरूप होते हुए भी करुणा करते हैं

विधी निर्मिता लीहितो सर्व भाळी |
परी लीहितो कोण त्याचे कपाळी ||
हरू जाळितो लोक संहारकाळी |
परी शेवटी शंकरा कोण जाळी ||१७५||
ब्रह्माजी जो सबके भाल पर लिखते हैं
उनके भाल पर जो लिखता हैं
शिवजी लोकों को प्रलयकाल में भस्म करते हैं
लेकिन वो भी जहाँ विश्राम पाते हैं

जगी द्वादशादित्य हे रुद्र अक्रा |
असंख्यात संख्या करी कोण शक्रा ||
जगी देव धुंडाळिता आढळेना |
जगी मुख्य तो कोण कैसा कळेना ||१७६||
रचना में १२ आदित्य और ११ रूद्र हैं
इंद्र तो असंख्य हैं कोई गिनती नहीं
परमात्मा तो ढूंढने से दिखता नहीं
मुख्य नियंता तो समझ में नहीं आ रहा

तुटेना फुटेना कदा देवराणा |
चळेना ढळेना कदा दैन्यवाणा ||
कळेना कळेना कदा लोचनासी |
वसेना दिसेना जगी मीपणासी ||१७७||
परम तत्व टूटता फूटता नहीं हैं
उसमे चलना ढलना और दीनता नहीं हैं
क्या भला उसे अपने आँखों से देख पाओगे
अनुभूति नहीं होगी न दिखेगा जबतक अहंकार हैं

जया मानला देव तो पूजिताहे |
परी देव शोधूनि कोणी न पाहे ||
जगी पाहता देव कोट्यानुकोटी |
जया मानली भक्ति जे तेचि मोठी ||१७८||
लोग तो भगवान को मानते हैं और पूजते हैं
स्वरुप अनुसंधान कोई नहीं करता
लोगोंने करोड़ों भगवान बनाए हैं
जहाँ जिसका भाव हैं वहां उसका देव हैं

तिन्ही लोक जेथूनि निर्माण झाले |
तया देवरायासि कोणी न बोले ||
जगी थोरला देव तो चोरलासे |
गुरूवीण तो सर्वथाही न दीसे ||१७९||
जहाँ से तीनो लोकों की उत्पत्ति हुई हैं
उस भगवान् से क्यों कोई नहीं बोलता
उस परमतत्त्व की अनुभूति तब तक नहीं होती
जबतक आप पर गुरुकृपा नहीं होती

गुरु पाहता पाहता लक्ष कोटी |
बहूसाल मंत्रावळी शक्ति मोठी ||
मनी कामना चेटके धातमाता |
जनीं व्यर्थ रे तो नव्हे मुक्तिदाता ||१८०||
गुरु तो लाखो करोडो की तादाद में है
उनके पास तो बड़े बड़े मंत्रो की शक्ति हैं
उनके मन में कामनाएं होती हैं और वे काला जादू करते हैं
ये गुरु थोथे हैं और मुक्ति नहीं दे सकते

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