Saturday, 25 June 2016

समर्थ रामदास स्वामी कृत मनाचे श्लोक १०१-११० हिंदी अनुवाद सहित

जया नावडे नाम त्या येम जाची |
विकल्पे उठे तर्क त्या नर्क ची ची ||
म्हणोनी अती आदरे नाम घ्यावे |
मुखे बोलता दोष जाती स्वभावे ||१०१||
द्वन्द्वों के ऊपर उठोगे नहीं तो काल का ग्रास बनोगे 
केवल विकल्प और तर्क तो नर्क में ही ले जायेंगे 
इसीलिए कोरे तर्क छोड़कर आदरपुर्वक नामस्मरण करें 
मुंह में नाम रहेगा तो स्वभाव में रहोगे दोषों से दूर

अती लीनता सर्वभावे स्वभावे |
जना सज्जनालागि संतोषवावे ||
देहे कारणी सर्व लावीत जावे |
सगूणी अती आदरेसी भजावे ||१०२||
आपके सब भावों में और स्वभाव में शालीनता हो 
सज्जन लोग आपसे आपके व्यवहार से संतुष्ट हो 
आपके हर सांस का व्यय शुभ कार्यों में हो 
शुभ कार्य करना ही सगुण परमात्मा का भजन हैं

हरीकीर्तनी प्रीति रामी धरावी |
देहेबुद्धि नीरूपणी वीसरावी ||
परद्रव्य आणीक कांता परावी |
यदर्थी मना सांडि जीवी करावी ||१०३||
जब हरि कीर्तन हो तो प्रीती राम में ही हो 
जब भगवतचर्चा करते हैं तो देह भूल जाए 
पर द्रव्य और पर स्त्री से संपर्क तो होगा 
हीनता न करते हुए राम को केंद्र में रखना होगा

क्रियेवीण नानापरी बोलिजेते |
परी चित्त दुश्चित्त ते लाजवीते ||
मना कल्पना धीट सैराट धावे |
तया मानवा देव कैसेनि पावे ||१०४||
हम करते कुछ नहीं बोलते बहोत हैं 
हमारे मन का मैल हमें लज्जित करता हैं 
यदि मन में कल्पनाएं बेलगाम दौड़ रही हैं 
तो परमात्मा से मिलन कैसे भला होगा

विवेके क्रिया आपुली पालटावी |
अती आदरे शुद्ध क्रीया धरावी ||
जनीं बोलण्यासारिखे चाल बापा |
मना कल्पना सोडि संसारतापा ||१०५||
विवेक को जागृत रखते हुए क्रियाशील बने 
बड़े ही भाव से शुभ कर्म में लग जाए 
आप खुद जैसा बोलते हो वैसे करे 
लोगों को प्रभावित करने के लिए डींगे न हाके

बरी स्नानसंध्या करी एकनिष्ठा |
विवेके मना आवरी स्थानभ्रष्टा ||
दया सर्वभूती जया मानवाला |
सदा प्रेमळू भक्तिभावे निवाला ||१०६||
अपने कर्मकांड पूरी निष्ठां से करे 
विवेक जगाए मन को भटकने न दे 
सब प्राणीमात्रों के प्रति जिसके ह्रदय में करुणा हैं 
उसीमे प्रेमभाव बना रहेगा और वो भक्ति रस का अनुभव करेगा

मना कोप आरोपणा ते नसावी |
मना बुद्धि हे साधुसंगी वसावी ||
मना नष्ट चांडाळ तो संग त्यागी |
मना होइ रे मोक्षभागी विभागी ||१०७||
क्रोध के आवेग में ना आये 
बुद्धि का सत्संग बना रहे 
नीच कल्पनाओं से अपने चित्त को ना भरे 
ऐसा करने से आप मुक्ति के अधिकारी होंगे

मना सर्वदा सज्जनाचेनि योगे |
क्रिया पालटे भक्तिभावार्थ लागे ||
क्रियेवीण वाचाळता ते निवारी |
तुटे वाद संवाद तो हीतकारी ||१०८||
हमारा मन हमेशा सत्संग में रहे 
तभी तो क्रिया सुधरेगी भक्तिभाव जागेगा
ऐसा होनेसे सिर्फ बोलेंगे नहीं करेंगे भी 
संवाद से वाद ख़त्म होंगे और हित साध्य होगा

जनीं वादवेवाद सोडूनि द्यावा |
जनीं सूखसंवाद सूखे करावा ||
जगी तोचि तो शोकसंतापहारी |
तुटे वाद संवाद तो हीतकारी ||१०९||
लोगों से वादविवाद ना करे 
लोगों से सुखपूर्वक सुखसंवाद करे 
इसीसे शोकसंताप दूर होगा 
वाद का अंत करनेवाला संवाद ही हित करेगा

तुटे वाद संवाद त्याते म्हणावे |
विवेके अहंभाव याते जिणावे ||
अहंतागुणे वाद नाना विकारी |
तुटे वाद संवाद तो हीतकारी ||११०||
संवाद तो वही हैं जो वाद समाप्त करे 
अपने अहंकार को ठीक से समझ दो 
अहंकार नाना प्रकार के वाद विकार पैदा करेगा 
वाद का अंत करनेवाला संवाद ही हित करेगा










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