Saturday, 25 June 2016

समर्थ रामदास स्वामी कृत मनाचे श्लोक ६१-७० हिंदी अनुवाद सहित

उभा कल्पवृक्षातळी दुःख वाहे |
तया अंतरी सर्वदा तेचि आहे ||
जनीं सज्जनीं वाद हा वाढवावा |
पुढे मागुता शोक जीवी धरावा ||६१||
आप के पास तो कल्पवृक्ष हैं
और आप छाव की खोज में हो
आप यदि विवादों में ही उलझते हैं
तो आपको शोक ही तो होगा

निजध्यास तो सर्व तूटोनी गेला |
बळे अंतरी शोक संताप ठेला ||
सुखानंद आनंद भेदे बुडाला |
मना निश्चयो सर्व खेदे उडाला ||६२||
ध्यान धारणा साधना से तो विमुख हुए
दुःख और क्रोध से अपने मन को भर लिया
सुख और आनंद में अब भेद नहीं हो पा रहा
अब संशय रह गया निश्चय चला गया

घरी कामधेनू पुढे ताक मागे |
हरीबोध सांडोनि वेवाद लागे ||
करी सार चिंतामणी काचखंडे |
तया मागता देत आहे उदंडे ||६३||
आपके पास कामधेनु हैं और दूसरों से छाज मांगते हो
अपने भीतर राम का बोध नहीं जगाते औरों से विवाद करते हो
हिरा छोड़कर कांच के टुकड़ों के पीछे जाते हों
कांच के टुकड़े तो मांगने से बहोत मिल जायेंगे

 अती मूढ त्या दृढ बुद्धी असेना |
अती काम त्या राम चित्ती वसेना ||
अती लोभ त्या क्षोभ होईल जाणा |
अती वीषयी सर्वदा दैन्यवाणा ||६४||
जहाँ मूढ़ता हैं वहां दृढ़ बुद्धि कैसे 
कामी के चित्त में राम कैसे 
लोभ का अंजाम तो क्षोभ ही हैं 
विषयी मन तो बड़ा ही दीन हैं 

नको दैन्यवाणे जिणे भक्तिऊणे |
अती मूर्ख त्या सर्वदा दुःख दूणे ||
धरी रे मना आदरे प्रीति रामी |
नको वासना हेमधामी विरामी ||६५||
वह जीना क्या जिसमे भक्ति न हो 
मूर्खता करने से दुःख तो दुगुना हो जायेगा 
हे मन सम्मान सहित प्रीती तो राम ही से हो 
सोने के महलों में भी तेरी आसक्ति न हों

नव्हे सार संसार हा घोर आहे |
मना सज्जना सत्य शोधूनि पाहे ||
जनीं वीष खाता पुढे सूख कैचे |
करी रे मना ध्यान या राघवाचे ||६६||
यह संसार तो बड़ा ही सारहीन हैं 
सार तत्व खोज के निकालना होगा 
क्या विषसेवन से सुख मिलेगा 
हे मन तू राम का ध्यान क्यों नहीं करता

घनश्याम हा राम लावण्यरूपी |
महाधीर गंभीर पूर्णप्रतापी ||
करी संकटी सेवकांचा कुडावा |
प्रभाते मनी राम चिंतीत जावा ||६७||
घनश्याम राम तो अति सुन्दर हैं 
धीर गम्भीर और पूर्ण प्रतापी हैं 
संकटों में भक्तों की रक्षा करते हैं 
प्रातःकाल राम का चिंतन करे

बळे आगळा राम कोदंडधारी |
महाकाळ विक्राळ तोही थरारी ||
पुढे मानवा किंकरा कोण केवा |
प्रभाते मनी राम चिंतीत जावा ||६८||
कोदण्डधारी राम तो बड़े बलवान हैं 
विकराल महाकाल भी उनसे भयभीत हैं 
सामान्य मनुष्यों की तो बात ही क्या 
प्रातःकाल श्रीराम का चिंतन करें
सुखानंदकारी निवारी भयाते |
जनीं भक्तिभावे भजावे तयाते ||
विवेके त्यजावा अनाचार हेवा |
प्रभाते मनी राम चिंतीत जावा ||६९||
सुखानंद का दाता ही भय का निवारण करेगा 
राम का भजन अत्यंत भक्तिभाव से करे 
विवेकी बने दुराचार ईर्ष्या न करे 
प्रातःकाल श्रीराम का स्मरण करे

सदा रामनामे वदा पूर्णकामे |
कदा बाधिजेना पदा नित्य नेमे ||
मदालस्य हा सर्व सोडोनि द्यावा |
प्रभाते मनी राम चिंतीत जावा ||७०||
रामनाम से युक्त काम से रहित
बुरे विचारों की कोई बाधा न होगी
अभिमान और आलस्य त्याग दे
प्रातःकाल श्रीराम का स्मरण करे





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