Saturday, 25 June 2016

समर्थ रामदास स्वामी कृत मनाचे श्लोक १३१-१४० हिंदी अनुवाद सहित

भजावा जनीं पाहता राम एकू |
करी बाण एकू मुखी शब्द एकू ||
क्रिया पाहता उद्धरे सर्व लोकू |
धरा जानकीनायकाचा विवेकू ||१३१||
लोगों के बीच हम एक राम का ही भजन करे 
रामका एक एक शब्द तो एक एक बाण हैं 
राम कथा सब लोकों का उद्धार कर सकती हैं 
जानकीनायक राम के विवेक को धारण करे

विचारूनि बोले विवंचूनि चाले |
तयाचेनि संतप्त तेही निवाले ||
बरे शोधल्यावीण बोलो नको हो |
जनीं चालणे शुद्ध नेमस्त राहो ||१३२||
सोचसमझकर बोले विचारपूर्वक चले 
जो लोग क्रोधित हैं उन्हें शांत करे 
जब तक सत्य पकड़ में नहीं आता मौन रहे 
आपका चाल चलन शुद्ध और प्रमाणिक हो

हरीभक्त वीरक्त विज्ञान राशी |
जेणे मानसी स्थापिले निश्चयासी ||
तया दर्शने स्पर्शने पुण्य जोडे |
तया भाषणे नष्ट संदेह मोडे ||१३३||
हरिभक्त याने वैराग्य और समता का महा निधि 
हरिभक्त माने जिसने ह्रदय में निश्चय की स्थापना की हैं 
जिसके स्पर्श और दर्शन से पुण्यों का निर्माण होता हैं 
जिसके साथ सम्भाषण से सब संदेहों का अंत होता हैं

नसे गर्व आंगी सदा वीतरागी |
क्षमा शांति भोगी दयादक्ष योगी ||
नसे लोभ ना क्षोभ ना दैन्यवाणा |
इही लक्षणी जाणिजे योगिराणा ||१३४||
जिसमे कोई गर्व नहीं और जो वीतरागी हैं
जो क्षमा और शांति में स्थित हैं और दया से युक्त हैं 
जिसमे कोई लोभ क्षोभ या दीनता नहीं हैं 
यहीं तो योगीराज के लक्षण हैं

धरी रे मना संगती सज्जनाची |
जेणे वृत्ति हे पालटे दुर्जनाची ||
बळे भाव सद्बुद्धि सन्मार्ग लागे |
महाक्रूर तो काळ विक्राळ भंगे ||१३५||
सज्जनों की संगती में रहे 
जिससे दुर्जनों में भी बदलाव आता हैं 
भक्ति और सद्बुद्धि जागती है सन्मार्ग मिलता हैं
महाक्रूर और विकराल काल का नाश होता हैं

भये व्यापिले सर्व ब्रह्मांड आहे |
भयातीत ते संत आनंत पाहे ||
जया पाहता द्वैत काही दिसेना |
भयो मानसी सर्वथाही असेना ||१३६||
यह सब ब्रह्माण्ड तो भयकंपित हैं 
जो अनन्त से जुड़ गया हैं वो संत तो भयातीत हैं 
जिसकी दृष्टी में कोई द्वैतभाव नहीं हैं 
जिसके मन में भय का सर्वथा अभाव है

जिवा श्रेष्ठ ते स्पष्ट सांगोनि गेले |
परी जीव अज्ञान तैसेचि ठेले ||
देहेबुद्धिचे कर्म खोटे टळेना |
जुने ठेवणे मीपणे आकळेना ||१३७||
श्रेष्ठजनों ने सब बातें स्पष्ट कही हैं 
लेकिन हमारा अज्ञान तो कायम बना हुआ हैं 
देहबुद्धि असार हैं लेकिन छूटती नहीं
हमारा स्वरुप अहंकार के कारण समझ के बाहर हैं

भ्रमे नाढळे वित्त ते गुप्त जाले |
जिवा जन्मदारिद्र्य ठाकूनि आले ||
देहेबुद्धिचा निश्चयो ज्या टळेना |
जुने ठेवणे मीपणे आकळेना ||१३८||
अचल सम्पदा भ्रम के कारण गुप्त हो गयी
ये किस दारिद्र्य ने जीव को जकड लिया 
जो देहबुद्धि के ऊपर नहीं उठ सकता 
अहंकारवश अपने स्वरुप को नहीं समझ सकता

पुढे पाहता सर्वही कोंदलेसे |
अभाग्यास हे दृश्य पाषाण भासे ||
अभावे कदा पुण्य गाठी पडेना |
जुने ठेवणे मीपणे आकळेना ||१३९||
वही तो एक तत्व सर्वव्यापी हैं 
जो अभागा हैं उसे हर जगह जड़ता दिखती हैं
यदि भाव ही नहीं हैं तो कोई पुण्यलाभ नहीं 
अहंकारवश स्वरुप समझ में नहीं आता

जयाचे तया चूकले प्राप्त नाही |
गुणे गोविले जाहले दुःख देही ||
गुणावेगळी वृत्ति तेही वळेना |
जुने ठेवणे मीपणे आकळेना ||१४०||
स्वरुप छीना नहीं जा सकता 
गुणों के अधीन होने से देहि बने दुखी हुए 
अब तो प्रवृत्ति गुणों से हटती नहीं 
अहंकारवश स्वरुप समझ में नहीं आता










1 comment:

  1. भये व्यापिले सर्व ब्रह्मांड आहे |
    भयातीत ते संत आनंत पाहे ||
    जया पाहता द्वैत काही दिसेना |
    भयो मानसी सर्वथाही असेना ||१३६||

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