Saturday, 25 June 2016

समर्थ रामदास स्वामी कृत मनाचे श्लोक ८१-९० हिंदी अनुवाद सहित

मना मत्सरे नाम सांडू नको हो |
अती आदरे हा निजध्यास राहो ||
समस्तांमधे नाम हे सार आहे |
दुजी तूळणा तूळिताही न साहे ||८१||
ईर्ष्या बढ़ेगी तो नाम छूट जायेगा 
आदरपूर्वक श्रीराम का ध्यान कर 
सभी साधनाओं में नाम ही सार हैं 
नाम स्मरण की तुलना कैसे हों

बहू नाम या रामनामी तुळेना |
अभाग्या नरा पामरा हे कळेना ||
विषा औषधा घेतले पार्वतीशे |
जिवा मानवा किंकरा कोण पूसे ||८२||
नाम तो राम ही का लेना 
सामान्य जीव के समझ में न आये 
शिवजी औषधि के रूप में सेवन करते हैं 
और सामान्य जन महिमा नहीं समझ पाते

जेणे जाळिला काम तो राम ध्यातो |
उमेसी अती आदरे गूण गातो ||
बहु ज्ञान वैराग्य सामर्थ्य जेथे |
परी अंतरी नामविश्वास तेथे ||८३||
काम को जलाने वाले शिवजी राम का ध्यान करते हैं 
उमा से आदरपूर्वक रामकथा कहते हैं 
जहाँ ज्ञान वैराग्य और सामर्थ्य हैं 
वही तो नाम स्मरण में विश्वास हैं

विठोने शिरी वाहिला देवराणा |
तया अंतरी ध्यास रे त्यासि नेणा ||
निवाला स्वये तापसी चंद्रमौळी |
जिवा सोडवी राम हा अंतकाळी ||८४||
विट्ठल शिवजी को अपने सर पर रखते हैं 
उन्हें तो जानो जो शिवजी के ह्रदय में हैं 
शिवजी अपने कठोर तप को रामनाम से शीतल करते हैं 
जीवन के अंतिम पलों में राम ही तो रक्षा करेंगे

भजा राम विश्राम योगेश्वरांचा |
जपू नेमिला नेम गौरीहराचा ||
स्वये नीववी तापसी चंद्रमौळी |
तुम्हां सोडवी राम हा अंतकाळी ||८५||
उस राम को भजे जो योगियों का विश्राम हैं 
जिसका स्मरण शिवपार्वती नियमपूर्वक करते हैं 
घनघोर तप करने वाले शिवजी रामनाम से शीतल हो जाते हैं

मुखी राम विश्राम तेथेचि आहे ।
सदानंद आनंद सेवोनि आहे ॥
तयावीण तो शीण संदेहकारी ।
निजधाम हे नाम शोकापहारी ॥८६॥
जब मुंह में राम हैं तभी तो विश्राम हैं 
क्या इस सदानंद का सेवन नहीं करना 
दूसरे काम से थकान और संदेह होगा 
रामनाम शोक का अंत करके निजधाम देगा

मुखी राम त्या काम बाधुं शकेना ।
गुणे इष्ट धारिष्ट त्याचे चुकेना ॥
हरीभक्त तो शक्त कामास भारी ।
जगीं धन्य तो मारुती ब्रह्मचारी ॥८७॥
मुंह में राम हैं तो काम की बाधा नहीं होंगी
गुण यदि सही हैं तो धैर्य गलत नहीं होंगा
हरिभक्ति से ही काम का अंत होगा 
ब्रह्मचारी हनुमान भक्ति से ही तो जाने जाते हैं

बहू चांगले नाम या राघवाचे |
अती साजिरे स्वल्प सोपे फुकाचे ||
करी मूळ निर्मूळ घेता भवाचे |
जिवा मानवा हेचि कैवल्य साचे ||८८||
रामनाम तो बड़ा ही सुन्दर हैं 
सुगम छोटा सरल निशुल्क हैं 
माया के समूल उच्चाटन में सक्षम हैं 
जीवों को कैवल्य प्रदान करनेवाला हैं

जनीं भोजनीं नाम वाचे वदावे |
अती आदरे गद्यघोषे म्हणावे ||
हरीचिंतने अन्न सेवीत जावे |
तरी श्रीहरी पाविजेतो स्वभावे ||८९||
भोजन के समय राम का स्मरण करे 
आदरपूर्वक नाम का उद्घोष करें
हरि चिंतन करते हुए अन्न सेवन करे 
फिर आप सहजरूपसे श्रीहरि को पाएंगे

न ये राम वाणी तया थोर हाणी |
जनीं व्यर्थ प्राणी तया नाम काणी ||
हरीनाम हे वेदशास्त्री पुराणी |
बहू आगळे बोलिली व्यासवाणी ||९०||
यदि वाणी में राम नहीं हैं तो भारी क्षति हो रही हैं 
ऐसे प्राणी का जीवन तो बेकार हैं 
पुराणों और वेदों में तो केवल हरिनाम की चर्चा हैं 
क्या अद्भुत बात कहीं हैं व्यास वाणी ने







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