Saturday, 25 June 2016

समर्थ रामदास स्वामी कृत मनाचे श्लोक १२१-१३० हिंदी अनुवाद सहित

महाभक्त प्रल्हाद हा कष्टवीला |
म्हणोनी तयाकारणे सिंह जाला ||
न ये ज्वाळ वीशाळ सन्नीध कोणी |
नुपेक्षी कदा देव भक्ताभिमानी ||१२१||
महाभक्त प्रह्लाद को कष्ट हुआ 
तो भगवान् सिंह बने 
जहर और आग की लपटों से उसे बचाया 
जिन भक्तों का ईश्वर को अभिमान हैं उनकी उपेक्षा कैसी

कृपा भाकिता जाहला वज्रपाणी |
तया कारणे वामनू चक्रपाणी ||
द्विजांकारणे भार्गवू चापपाणी |
नुपेक्षी कदा देव भक्ताभिमानी ||१२२||
जब इंद्र ने कृपा की याचना की 
तो चक्रपाणि स्वयं वामन बने 
ब्राह्मणों के लिए परशुराम बने 
जिन भक्तों का ईश्वर को अभिमान हैं उनकी उपेक्षा कैसी

अहल्येसतीलागी आरण्यपंथे |
कुडावा पुढे देव बंदी तयाते ||
बळे सोडिता घाव घाली निशाणी |
नुपेक्षी कदा देव भक्ताभिमानी ||१२३||
सति अहल्या को अरण्य में मुक्ति प्रदान की 
बंदी देवजनों ने जब रक्षा की गुहार लगायी तो 
देवों की रक्षा की जिसका डंका आज भी बज रहा हैं 
जिन भक्तों का ईश्वर को अभिमान हैं उनकी उपेक्षा कैसी

तये द्रौपदीकारणे लागवेगे |
त्वरे धावतो सर्व सांडूनि मागे ||
कळीलागि जाला असे बौद्ध मौनी |
नुपेक्षी कदा देव भक्ताभिमानी ||१२४||
द्रौपदी की पुकार पर बड़ी ही शीघ्रता से दौड़े 
जैसे ही पुकार सुनी सब दूसरे काम छोड़ दिए 
कलियुग में लोककल्याण के लिए बुद्ध अवतार लिया
जिन भक्तों का ईश्वर को अभिमान हैं उनकी उपेक्षा कैसी

अनाथां दिनांकारणे जन्मताहे |
कलंकी पुढे देव होणार आहे ||
तया वर्णिता शीणली वेदवाणी |
नुपेक्षी कदा देव भक्ताभिमानी ||१२५||
दीन असहाय जनों के लिए ही तो जन्म लेते हैं 
आगे कलकी अवतार धारण करने वाले हैं 
जिसका वर्णन करने में वेद भी असमर्थ हैं 
जिन भक्तों का ईश्वर को अभिमान हैं उनकी उपेक्षा कैसी

जनांकारणे देव लीलावतारी |
बहुतांपरी आदरे वेषधारी ||
तया नेणती ते जन पापरूपी |
दुरात्मे महानष्ट चांडाळ पापी ||१२६||
लोककल्याण के लिए ही भगवान की लीला हैं 
भिन्न भिन्न वेश कितने आदर से धारण करते हैं 
इस बात को न समझने वाले तो पापरूप हैं 
नष्ट दुरात्मा चांडाल और पापी हैं

जगी धन्य तो राममूखे निवाला |
कथा ऐकता सर्व तल्लीन जाला ||
देहेभावना रामबोधे उडाली |
मनोवासना रामरूपी बुडाली ||१२७||
वो धन्य हैं जिसके मुख में हरिनाम हैं 
जिसका सब ध्यान हरिकथा में ही लगा हैं 
राम का बोध होने से जिसकी देह भावना छूट गयी हैं 
जिसके मन की वासनाएँ रामरूप में डूब गयी हैं

मना वासना वासुदेवी वसो दे |
मना वासना कामसंगी नसो दे ||
मना कल्पना वाउगी ते न कीजे |
मना सज्जना सज्जनीं वस्ति कीजे ||१२८||
हमारी वासना तो वासुदेव में हो 
हमारी वासना काम में ना हो 
वाम कल्पनाएं न करे 
हे सज्जन मन सज्जनों के संग रमता जा

गतीकारणे संगती सज्जनाची |
मती पालटे सूमती दुर्जनाची ||
रतीनायिकेचा पती नष्ट आहे |
म्हणोनी मनातीत होवोनी राहे ||१२९||
सत्संग से ही सतगति होगी 
अच्छे विचार एक दुर्जन की दिशा बदल सकते हैं 
मन में तो काम का वास हैं 
इसलिए मन के पार होकर जीना होगा

मना अल्प संकल्प तोही नसावा |
सदा सत्यसंकल्प चित्ती वसावा ||
जनीं जल्प वीकल्प तोही त्यजावा |
रमाकांत एकांतकाळी भजावा ||१३०||
हमारे खुद के कोई संकल्प न हो 
जो सत्य हैं उसके अधीन हमारा चित्त हो 
बकवास न करे जिससे अनेक विकल्प उत्पन्न होते हैं
एकांत में रमाकांत श्रीराम का स्मरण करे










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